my quran journey

009. At Tawbah-H

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1.Heading 2.Time of Revelation 3.Ayyat 4.Sub-Heading
1 Mushrikeen-E-Arab kai Silsalay Mei Akhari Aur Takmeeli Ahkaam साल 9 हिजरी,हज के मौके पर (फ़तह मक्का के बाद) मुश्रिकीने अरब के लिए फ़ैसला कुन एलान।
साल 8 हिजरी फ़तह मक्का से पहले नाज़िल हुई। हक़ और बातिल में सुलह नहीं हो सकती।
जन्नत खून-ए- जिगर देकर ही मिलेगीी ।
महदूद मज़हबी तसव्वुर की ज़ोरदार नफ़ी।
दोस्ती की बुनियाद सिर्फ़ ईमान पर रखें।
दुनियावी मुहब्बतों को दीनी मुहब्बतों पर तर्जी देने वाले फ़ासिक़ हैं।
"Baisat- E- Khasusi"  Ki Takmeel  साल 9 हिजरी, हज के मौके पर (फ़तह मक्का के बाद) फ़ैसला कुन चीज़ असबाब नहीं अल्लाह की मदद है।
मुश्रिकीन के मस्जिद-ए- हराम में दाखिले पर पाबंदी।
इसलामी रियासत में गै़र मुस्लिमों की हैसियत।
यहूदियों और ईसाईयों का शिर्क।
अहले किताब साज़िशों के ज़रिए इसलाम का रास्ता रोकना चाहते हैं।
नबी-ए-अकरम ﷺ के बेसत का मक़सद ग़ल्बा-ए-दीन था।
उलेमा और सूफ़िया की अक्सरियत लोगों का माल नाहक़ खाते हैं।
साल मे 12 महीने अल्लाह ने तय किए हैं।
नसी का क़एदा हराम है।
2 बैरूने मुल्क दावत का आग़ाज़। ग़ज़्वा -ए- तबूक के लिए रवानगी से पहले और दौराने सफ़र नाज़िल हुई। अल्लाह की राह में निकलने से जी ना चुराओ।
मुनाफ़िक़ाना तर्ज़े अमल।
अल्लाह की राह में माल और जान लगाने वाले ही मोमिन हैं।
तक़्वे के परदे मे छिपा हुआ बहाना।
हारे भी तो बाज़ी मात नहीं।
मुनाफ़िक़ीन का इन्फ़ाक़ क़ुबूल ना किया जाएगा।
नबी-ए-अकरम ﷺ पर अदल ना करने का बोहतान।
ज़कात के मसारिफ़।
मुनाफ़िक़ीन की गुस्ताखियाॅं।
मुनाफ़िक़ीन मर्द और औरतें नेकी से रोकते हैं और बुराईयों को फ़ैलाते हैं।
तारीख़ से इबरत।
मुनाफ़िक़ीन और कुफ़्फ़ार के खिलाफ जिहाद का हुक्म।
अल्लाह से वादा खिलाफी की सज़ा।
मुनाफ़िक़ीन के लिए नबी ﷺ की दुवा ए इस्तिग़फ़ार कुबूल ना होगी।
जहन्नुम की आग दुनिया की आग से ज़्यादा शदीद है।
मुनाफ़िक़ीन की महरूमियाॅं।
मुनाफ़िक़ीन के लिए इनके माल और औलाद बाइसे अज़ियत होंगें।
मुनाफ़िक़ाना तर्ज़े अमल।
मुनाफ़िक़ाना तर्ज़े अमल।
ग़ज़्वा ए तबूक के बाद मदीना वापसी के बाद नाज़िल हुईं। ग़ज़्वा ए तबूक में शिरकत ना करने वाले चार ग्रूप।
अल्लाह की राह में खर्च करने वाले दो किरदार।
सहाबा किराम مؓ की पैरवी.......अल्लाह की जन्नत के हुसूल का ज़रिया।
मुनाफ़िक़ीन के लिए दोहरा अज़ाब।
ग़ज़्वा ए तबूक मे शरीक ना होने वाले 2 गिरोहों का इज़हार नदामत।
मस्जिदे क़ुबा की अज़मत और नाम निहाद मस्जिद ज़िरार की मज़म्मत।
किरदार की पोक़्तगी तामीर तक़्वा से होती है।
कलमा पढने वाला अल्लाह से एक अहद कर चुका है।
अल्लाह के महबूब बंदों के औसाफ़।
मुश्रिकीन के लिए बख्शीश की दुआ माँगना जायज़ नहीं।
अल्लाह किसी को जबरदस्ती गुमराह नही करता।
नबी-ए-अकरम ﷺ और सहाबा किराम रज़ि अल्लाहु अनहुम पर अल्लाह का नज़रे करम।
ग़ज़्वा ए तबूक में शिरकत ना करने पर नादिम होने वालों की बख्शीश का एलान।
तक़्वा इख्तियार करने के लिए जमात से जुड़ना ज़रूरी है।
नबी-ए-अकरम ﷺ से मुहब्बत अपनी जान से भी ज़्यादा होनी चाहिये।
इल्मे दीन सीखने की अहमियत।
इसलामी इंक़लाब की तौसी।
क़ुरआन की तासीर.... मोमिनों पर .... मुनाफ़िक़ीन पर।
. मुनाफ़िक़ीन के लिए बार-बार ज़िल्लत।
नबी-ए-अकरम ﷺ की अपनी उम्मत से मुहब्बत।
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