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                                                             | 
                                                
                                        1.Heading                     | 
                                                
                                        2.Time of Revelation                     | 
                                                
                                        3.Ayyat                     | 
                                                
                                        4.Sub-Heading                     | 
                                                
                                                             | 
                                        
                            
                                | 
                                        1                     | 
                                                
                                        Mushrikeen-E-Arab kai Silsalay Mei Akhari Aur Takmeeli Ahkaam                     | 
                                                
                                        साल 9 हिजरी,हज  के मौके पर (फ़तह मक्का के बाद)                     | 
                                                
                                                             | 
                                                
                                        मुश्रिकीने अरब के लिए फ़ैसला कुन एलान।                     | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                                                
                            
                                                                                                
                            
                                                        | 
                                        साल 8 हिजरी फ़तह मक्का से पहले नाज़िल हुई।                     | 
                                                
                                                             | 
                                                
                                        हक़ और बातिल में सुलह नहीं हो सकती।                     | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                          जन्नत खून-ए- जिगर देकर ही मिलेगीी ।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         महदूद मज़हबी तसव्वुर की ज़ोरदार नफ़ी।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         दोस्ती की बुनियाद सिर्फ़ ईमान पर रखें।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         दुनियावी मुहब्बतों को दीनी मुहब्बतों पर तर्जी देने वाले फ़ासिक़ हैं।                     | 
                                                    
                            
                                            | 
                                                             | 
                                                                                        
                            
                                            | 
                                        "Baisat- E- Khasusi"  Ki Takmeel                      | 
                                                
                                        साल 9 हिजरी, हज के मौके पर (फ़तह मक्का के बाद)                      | 
                                                
                                                             | 
                                                
                                         फ़ैसला कुन चीज़ असबाब नहीं अल्लाह की मदद है।                      | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुश्रिकीन के मस्जिद-ए- हराम में दाखिले पर पाबंदी।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         इसलामी रियासत में गै़र मुस्लिमों की हैसियत।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         यहूदियों और ईसाईयों का शिर्क।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                          अहले किताब साज़िशों के ज़रिए इसलाम का रास्ता रोकना चाहते हैं।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         नबी-ए-अकरम ﷺ के बेसत का मक़सद ग़ल्बा-ए-दीन था।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         उलेमा और सूफ़िया की अक्सरियत लोगों का माल नाहक़ खाते हैं।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         साल मे 12 महीने अल्लाह ने तय किए  हैं।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                          नसी का क़एदा हराम है।                     | 
                                                    
                            
                                | 
                                                             | 
                                                                                                    
                            
                                | 
                                        2                     | 
                                                
                                         बैरूने मुल्क दावत का आग़ाज़।                     | 
                                                
                                        ग़ज़्वा -ए- तबूक के लिए रवानगी से पहले और दौराने सफ़र नाज़िल हुई।                      | 
                                                
                                                             | 
                                                
                                        अल्लाह की राह में निकलने से जी ना चुराओ।                     | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुनाफ़िक़ाना तर्ज़े अमल।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         अल्लाह की राह में माल और जान लगाने वाले ही मोमिन हैं।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                          तक़्वे के परदे मे छिपा हुआ बहाना।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         हारे भी तो बाज़ी मात नहीं।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        मुनाफ़िक़ीन का इन्फ़ाक़ क़ुबूल ना किया जाएगा।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         नबी-ए-अकरम ﷺ पर अदल ना करने का बोहतान।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                          ज़कात के मसारिफ़।                     | 
                                                    
                            
                                                                                                
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुनाफ़िक़ीन की गुस्ताखियाॅं।                      | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुनाफ़िक़ीन मर्द और  औरतें नेकी से रोकते हैं और बुराईयों को फ़ैलाते हैं।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                          तारीख़ से इबरत।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                                             | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुनाफ़िक़ीन और कुफ़्फ़ार के खिलाफ जिहाद का हुक्म।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        अल्लाह से वादा खिलाफी की सज़ा।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुनाफ़िक़ीन के लिए   नबी ﷺ की दुवा ए इस्तिग़फ़ार कुबूल ना होगी।                     | 
                                                    
                            
                                                                                                
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         जहन्नुम की आग दुनिया की आग से ज़्यादा शदीद है।                      | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        मुनाफ़िक़ीन की महरूमियाॅं।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुनाफ़िक़ीन के लिए इनके माल और औलाद बाइसे अज़ियत होंगें।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                          मुनाफ़िक़ाना तर्ज़े अमल।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        मुनाफ़िक़ाना तर्ज़े अमल।                     | 
                                                    
                            
                                                        | 
                                                             | 
                                                                            
                            
                                                        | 
                                        ग़ज़्वा ए तबूक के बाद मदीना वापसी के बाद नाज़िल हुईं।                      | 
                                                
                                                             | 
                                                
                                         ग़ज़्वा ए तबूक में शिरकत ना करने वाले चार ग्रूप।                     | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        अल्लाह की राह में खर्च करने वाले दो किरदार।                     | 
                                                    
                            
                                                                                                
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         सहाबा किराम مؓ की पैरवी.......अल्लाह की जन्नत के हुसूल का ज़रिया।                      | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुनाफ़िक़ीन के लिए दोहरा अज़ाब।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         ग़ज़्वा ए तबूक मे शरीक ना होने वाले 2 गिरोहों का इज़हार नदामत।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मस्जिदे क़ुबा की अज़मत और नाम निहाद मस्जिद ज़िरार की मज़म्मत।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         किरदार की पोक़्तगी तामीर तक़्वा से होती है।                      | 
                                                    
                            
                                                                                                
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         कलमा पढने वाला अल्लाह से एक अहद कर चुका है।                     | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        अल्लाह के महबूब बंदों के औसाफ़।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         मुश्रिकीन के लिए बख्शीश की दुआ माँगना जायज़ नहीं।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        अल्लाह किसी को जबरदस्ती गुमराह नही करता।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         नबी-ए-अकरम ﷺ  और सहाबा किराम रज़ि अल्लाहु अनहुम पर अल्लाह का नज़रे करम।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        ग़ज़्वा ए तबूक में शिरकत ना करने पर नादिम होने वालों की बख्शीश का एलान।                      | 
                                                    
                            
                                                                                                
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         तक़्वा इख्तियार करने के लिए जमात से जुड़ना ज़रूरी है।                      | 
                                                
                                        
   
      
   
   
      
   
                     | 
                                        
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         नबी-ए-अकरम ﷺ से मुहब्बत अपनी जान से भी ज़्यादा होनी चाहिये।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         इल्मे दीन सीखने की अहमियत।                     | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         इसलामी इंक़लाब की तौसी।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                         क़ुरआन की तासीर.... मोमिनों पर .... मुनाफ़िक़ीन पर।                      | 
                                                    
                            
                                                                    | 
                                                             | 
                                                
                                        . मुनाफ़िक़ीन के लिए बार-बार ज़िल्लत।                      | 
                                                    
                            
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                                         नबी-ए-अकरम ﷺ  की अपनी उम्मत  से मुहब्बत।                      |